रामकथा सुनाने से पहले यह जानना जरूरी है कि श्रोता इसका पात्र है अथवा नही
तमिलनाडु।श्रीशिव राम मिलन महोत्सव श्रीरामेश्वरमधाम गोस्वामीमठ श्रीरामकथा के पंचम दिवस पूज्य सन्तश्री इंद्रेश जी महाराज ने नारद मोह और श्री रामावतार प्रसंग का अत्यन्त मनोहरी वर्णन किया। जिसे सुनकर श्रोता भावविभोर हो गये। श्री रामेश्वरम महादेव मंदिर का उल्लेख करते हुए सन्त प्रवर ने कहा कि मन्दिर के चारो प्रवेश द्वार पर तमिल भाषा में शिव शिव लिखा हुआ है। शिव ही सर्व कल्याणकारी हैं। महाराज श्री ने कहा कि जलज नयन यानि कमल के समान जिसके नेत्र हैं, ऐसे महादेव की महिमा अपरम्पार है। कहा कि महादेव को भी रामजी का बाल रूप अति प्रिय है।
बंदउँ बालरूप सोइ रामू।
सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥
मंगल भवन अमंगल हारी।
द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥
याज्ञवल्क्य जी ने भारद्वाज मुनि से कहा कि आपने मुझसे रामकथा सुनाने को कहा था, किन्तु हमने आपको शिव चरित्र सुनाकर आपके मन को टटोला। क्योंकि रामकथा सुनाने से पहले यह जानना जरूरी है कि श्रोता इसका पात्र है अथवा नही। उन्होंने कहा कि भगवत प्राप्ति के लिए भक्त का उत्साहित होना जरूरी है। शबरी के मन में श्रीराम को लेकर बहुत उत्साह था। वह नित्य उत्साहपूर्वक रामजी के आगमन की प्रतिक्षा करती थी। और उसके उत्साह के फलस्वरूप ही रामजी का उसकी कुटिया में आगमन हुआ।
मै जाना तुम्हार गुन शीला….. ऋषि याज्ञवल्क्य जी ने भारद्वाज मुनि से कहा कि हमने आपके गुण और शील को जान लिया है। अब आप रामकथा सुनने के अधिकारी हैं। इसी प्रकार माता पार्वती ने भी महादेव से कहा – हे प्रभु अब हमने भी सती चरित्र के दौरान अपनी गलतियों को समझ लिया है। अब मै पूर्ण मनोयोग से आपके मुखारविंद से श्रीराम जी की लीला के बारे में जानने को उत्सुक हूं। यह सुनकर शिव जी प्रसन्न हुए।
धन्य धन्य गिरिराज कुमारी, तुम समान नहि कोउ उपकारी …. शिवजी ने पार्वती जी की प्रशंसा करते हुए उन्हें रामकथा सुनाना शुरू किया। महादेव ने कहा कि हे गिरिजा तुम्हारे गुरुदेव नारद मुनि के शाप के कारण रामजी को पृथ्वी पर आना पड़ा। तब पार्वती जी ने गुरु के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए पूछा – कारन कवन शाप मुनि दीन्हा… फिर भगवान शिव ने नारद मोह प्रसंग के तहत राजा शीलनिधि और विश्वमोहिनी के स्वयंबर से जुड़ी नारद जी की कथा का वर्णन किया। जिसमे कुपित होकर नारद जी ने श्रीहरि को पत्नी वियोग में पृथ्वी पर वन वन भ्रमण करने और बंदरों के सहयोग से कार्यसिद्धि होने का शाप दिया। किन्तु जब श्रीहरि ने नारद के मन से माया का पर्दा हटाया, तो नारद जी को अपनी गलती का आभास हुआ, और वे क्षमा मांगने लगे। शिवजी ने राजा प्रतापभानू की कथा भी सुनाया पार्वती जी को। शिवजी ने कहा कि और भी बहुत से कारण थे, जिसके कारण रामजी को पृथ्वी पर आना पड़ा। इसके अलावा धरती पर राक्षसों की संख्या बढ़ जाने के कारण धरती माता ने गाय का रूप धारण कर देवताओं से धरती का भार कम करने का आग्रह किया। इसके अलावा कश्यप और अदिति ने भगवान से अपने घर पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा था। त्रेता युग में कश्यप जी महाराज दशरथ और अदिति माता कौशल्या के रूप में विराजमान हुए। तो हरि को दशरथ कौशल्या के पुत्र के रूप में भी जन्म लेना था। यह भी श्रीहरि के अवतरण का एक कारण बना।
इस प्रकार जब गाय रूपी धरती माता के आग्रह पर देवताओं ने श्री नारायण का आह्वान किया, तो आकाशवाणी हुई कि शीघ्र ही वे (नारायण) अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के पुत्र के रूप में अवतरित होंगे, और फिर पृथ्वी के भार को कम करेंगे। इंद्रेश जी महाराज ने बताया कि कैसे महाराज दशरथ गुरु वशिष्ठ के यहां जाकर अपने पुत्रहीन होने की पीड़ा व्यक्त करते हैं, और वशिष्ठ जी खुद यजमान बनकर यज्ञ करते हैं महाराज दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए। अन्ततः यज्ञ सफल होता है और महाराज दशरथ की तीनों रानियों यथा कौशल्या के गर्भ से श्रीराम, कैकेयी के गर्भ से भरत और सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न जी जन्म लेते हैं। इस प्रकार इंद्रेश जी महाराज ने भय प्रकट कृपाला … आदि भजनों के माध्यम से राम जन्म का मनोहारी वर्णन किया। इसके पूर्व महाराज जी ने अपने प्रिय भजन .. तेरी शरण में आकर मै धन्य हो गया… आदि की संगीतमय प्रस्तुति किया। जिसे सुनकर श्रोता भावविभोर होकर नृत्य करने लगे। इस प्रकार आज की कथा को विश्राम दिया गया। कार्यक्रम के मुख्य यजमान श्री अवधेश पाठक ने अपने परिजनों सहित श्री रामायण जी की आरती किया। श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण किया गया।