गरीबो का किसमिस है महुआ
चैत्र मास में सुबह सुबह मन्द मकरंद फैलाने वाला महुआ लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसमें सूखा और विषम परिस्थितयां सहन करने की अद्वितीय क्षमता होती है, जिसका शायद ही कोई और फलदार वृक्ष बराबरी कर सके। लगभग 25 मी ऊंचाई तक पहुंच सकने वाले पर्णपाती पेड़ो की लकड़ी मजबूत और ईमारती होती है । पत्तियां पौष्टिक चारा होती हैं और इसके बड़े बीजों से औषधीय गुणों से युक्त तेल निकलता है जो खाद्य व सौन्दर्य के उपयोग में आता है । महुआ के फूलों का क्या कहना, शायद ही कोई इसका मुकाबला कर सके । मुलायम और रसदार फूल आधी रात के बाद से ही गिरने लगते हैं और सुबह होते तक जमीन पर एक अद्भुत छटा बिखेर देते हैं । पूरा वातावरण मीठी सुगंध से भर जाता है। सच कहें तो महुआ ही बसंत की बहार को धार देता है।
![](https://samayikblitz.com/wp-content/uploads/2024/04/fb_img_17135043812684016425466770456165.jpg)
पूर्वांचल और पहाड़ी क्षेत्रों के, गांवों में फूलों को एकत्र कर और सुखाकर अनेक प्रकार से उपयोग में लाया जाता है। महुआ के सूखे फूलों से मीठी मोटी रोटी/ पराठे बनाये जाते हैं । इसे गर्मकर और कूटकर स्वादिष्ट ‘लट्टा’ भी तैयार किया जाता है । दुधारू, बीमार और कमजोर पशुओं को अच्छी सेहत प्रदान करने में भी यह बहुत उपयोगी है । प्राचीन साहित्य में महुआ के फूलों से बननेवाली मदिरा का उल्लेख ‘माध्वी’ के रूप में भी मिलता है। वर्तमान में ‘महुआ’ देशी शराब का एक पर्याय भी है।
अपने अनगिनत गुणों के बावजूद भी आज महुआ बेहद उपेक्षित है। इ सके नये बाग नहीं लग रहे हैं। सामाजिक और वन विभाग के रोपण में इसे पर्याप्त जगह नहीं मिला है।