भारत का पानी अब पाकिस्तान नहीं जाएगा
न रोटी न पानी पाकिस्तान की यही कहानी। ये लाइन पड़ोसी मुल्क के ऊपर एक दम मुफीद बैठती है। भारत की रावी नदी पर बांध बनकर तैयार हो गया है। इसके साथ ही पाकिस्तान को मिलने वाला रावी नदी का पानी रुक गया है।
भारत ने पाकिस्तान में जाने वाले रावी नदी के पानी को आखिरकार पूरी तरह से रोक दिया है. भारत रावी नदी पर शाहपुर कंडी बैराज के पूरा होने का 45 साल से इंतजार कर रहा था.
अब बैराज का निर्माण पूरा होने के बाद रावी नदी से पाकिस्तान की ओर जाने वाला पानी रोक दिया है. पंजाब-जम्मू-कश्मीर सीमा पर यह डेवलेपमेंट जल आवंटन मामले में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है. जम्मू- कश्मीर क्षेत्र को अब पाकिस्तान के लिए पहले से निर्धारित 1150 क्यूसेक पानी का अतिरिक्त लाभ मिलेगा. यह पानी सिंचाई के उद्देश्यों को पूरा करेगा. जिससे कठुआ और सांबा में 32,000 हेक्टेयर से अधिक जमीन को फायदा होगा.
सिंधु जल संधि
विश्व बैंक की देखरेख में 1960 में हुई ‘सिंधु जल संधि’ के तहत रावी सतलुज और ब्यास नदियों के पानी पर भारत का विशेष अधिकार है. जबकि पाकिस्तान सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों पर नियंत्रण रखता है. पंजाब के पठानकोट जिले में स्थित शाहपुर कंडी बैराज का निर्माण जम्मू-कश्मीर और पंजाब के बीच विवाद के कारण रुका हुआ था. इसके कारण बीते कई वर्षों से भारत के पानी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में जा रहा था.
शाहपुर कंडी बैराज
1979 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर सरकारों ने पाकिस्तान का पानी रोकने के लिए रंजीत सागर बांध और शाहपुर कंडी बैराज बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. उस समय जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला थे और पंजाब में उनके समकक्ष प्रकाश सिंह बादल थे. साल 1982 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस परियोजना की नींव रखी, जिसके 1998 तक पूरा होने की उम्मीद थी. रणजीत सागर बांध का निर्माण 2001 में पूरा हो गया था, लेकिन शाहपुर कंडी बैराज नहीं बन सका और रावी नदी का पानी पाकिस्तान में बहता रहा.
2008 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित हुई
2008 में शाहपुर कंडी परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था, लेकिन निर्माण कार्य 2013 में शुरू हुआ. विडंबना यह है कि 2014 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच विवादों के कारण परियोजना फिर से रुक गई थी. परियोजना मूल रूप से 2002 में पूरी होनी थी, लेकिन फंडिंग मुद्दों, भूमि अधिग्रहण समस्याओं और पर्यावरण संबंधी चिंताओं सहित कई कारकों के कारण इसमें देरी हुई. यह परियोजना अंततः 2022 में पूरी हुई. 2016 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली को संबोधित करते हुए, भारतीय किसानों के लिए सतलुज, ब्यास और रावी नदियों के पानी का कुशल उपयोग सुनिश्चित करने का संकल्प लिया. उन्होंने भारत के उचित दावे पर जोर दिया.
जल प्रबंधन परियोजनाएं
भारत ने कई जल प्रबंधन परियोजनाएं शुरू की हैं, जिनमें सतलुज पर भाखड़ा बांध, ब्यास पर पोंग और पंडोह बांध और रावी पर थीन (रंजीतसागर) जैसी भंडारण सुविधाओं का निर्माण शामिल है. ब्यास-सतलुज लिंक और इंदिरा गांधी नहर जैसी परियोजनाओं के साथ मिलकर इन पहलों ने भारत को नदियों के पानी के लगभग पूरे हिस्से (95%) का उपयोग करने में सक्षम बनाया है.
कई राज्यों को मिलेगा फायदा
55.5 मीटर ऊंचा शाहपुरकंडी बांध एक बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना का हिस्सा है, जिसमें 206 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता वाली दो जल विद्युत परियोजनाएं शामिल हैं. यह रंजीत सागर बांध परियोजना से 11 किमी नीचे रावी नदी पर बनाया गया है. बांध के पानी से जम्मू-कश्मीर के अलावा पंजाब और राजस्थान को भी मदद मिलेगी. बांध से पैदा होने वाली पनबिजली का 20 फीसदी हिस्सा जम्मू-कश्मीर को भी मिल सकेगा.