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भारत का आर्थिक मंथन और विकास का अमृत

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हरदीप एस. पुरी

हरदीप एस पुरी


भारतीय सभ्यता में अरसे से यह मान्यता रही है कि कामयाबी से पहले परीक्षा होती है। समुद्र मंथन, जहां मथने की प्रकिया से अमृत निकला था, इसी तरह हमारे आर्थिक मंथन ने भी हमेशा ही नवीनता का मार्ग प्रशस्त किया है। वर्ष1991 के संकट से जहां उदारीकरण का जन्म हुआ; वहीं महामारी से डिजिटल उपयोग तेज हुआ। और आज, भारत को एक “मृत अर्थव्यवस्था” कहने वाले संशयवादियों के शोर-शराबे के बीच – तीव्र विकास, मजबूत बफर, और व्यापक अवसर – की एक तथ्यपरक कहानी उभर कर सामने आई है।
जीडीपी के ताजा आंकड़ों पर जरा गौर करें। वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी 7.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी। यह वृद्धि दर पिछली पांच तिमाहियों में सबसे अधिक है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वृद्धि व्यापक है: सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) 7.6 प्रतिशत बढ़ा है, जिसमें मैन्यूफैक्चरिंग 7.7 प्रतिशत, निर्माण 7.6 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र लगभग 9.3 प्रतिशत बढ़ा है। नॉमिनल जीडीपी में 8.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह कोई मनमाने तरीके से बताई गई तेजी नहीं है। यह बढ़ते उपभोग, मजबूत निवेश और निरंतर सार्वजनिक पूंजीगत व्यय व पूरी अर्थव्यवस्था में लागत कम करने वाले लॉजिस्टिक्स संबंधी सुधारों से हासिल नतीजों का सबूत है।
भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी और सबसे तेज गति से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है। यह तेजी के मामले में दुनिया की पहली और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं क्रमशः अमेरिका और चीन से भी आगे निकल गई है। वर्तमान गति से, हम इस दशक के अंत तक जर्मनी को पीछे छोड़कर बाजार-विनिमय के संदर्भ में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर हैं। हमारी गति वैश्विक स्तर पर मायने रखती है। स्वतंत्र अनुमान बताते हैं कि भारत पहले से ही वैश्विक वृद्धि में 15 प्रतिशत से अधिक का योगदान दे रहा है। प्रधानमंत्री ने एक स्पष्ट लक्ष्य रखा है — सुधारों के मजबूत होने और नई क्षमताओं के सामने आने के साथ-साथ वैश्विक वृद्धि में हमारी हिस्सेदारी बढ़कर 20 प्रतिशत तक पहुंचे।
विभिन्न बाजारों और रेटिंग एजेंसियों ने हमारे इस अनुशासन को मान्यता दी है। एसएंडपी ग्लोबल ने मजबूत विकास, मौद्रिक विश्वसनीयता और राजकोषीय सुदृढ़ीकरण का हवाला देते हुए, 18 वर्षों में पहली बार भारत की ‘सॉवरेन रेटिंग’ को उन्नत किया है। इस अपग्रेड से उधार लेने की लागत कम होती है और निवेशक आधार का विस्तार होता है। यह “मृत अर्थव्यवस्था” की धारणा को भी झुठलाता है। जोखिम के स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ताओं ने अपनी रेटिंग के साथ अपना मत दिया है।
उतना ही महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि आखिर इस सबका लाभ किसे मिला है। वर्ष 2013-14 और 2022-23 के बीच, 24.82 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बाहर निकल आए हैं। यह बदलाव उन बुनियादी सेवाओं – बैंक खाते, रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन, स्वास्थ्य बीमा, नल का जल और प्रत्यक्ष हस्तांतरण – की बड़े पैमाने पर आपूर्ति पर निर्भर है जो गरीबों को विकल्प चुनने का अधिकार देता है। दुनिया के सबसे जीवंत लोकतंत्र और उल्लेखनीय जनसांख्यिकीय चुनौतियों के बीच विकास का यह पैमाना बेहद खास है। विकास का भारत का यह मॉडल आम सहमति के निर्माण, प्रतिस्पर्धी संघवाद और डिजिटल माध्यमों के उपयोग से अंतिम छोर तक सेवा प्रदान करने को महत्व देता है। यह घोषणा के मामले में धीमा, क्रियान्वयन के मामले में तेज और निर्माण की दृष्टि से टिकाऊ है। जब आलोचक हमारी तुलना तेज भागने वाले सत्तावादियों से करते हैं, तो वे इस तथ्य को नजरअंदाज कर देते हैं कि हम मैराथन धावक की तर्ज पर लंबी दूरी तय करने वाली एक अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहे हैं।
भारत के पेट्रोलियम मंत्री के रूप में, मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि हमारी ऊर्जा सुरक्षा इस तीव्र विकास में किस प्रकार सहायक की भूमिका निभा रही है। आज, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता, चौथा सबसे बड़ा तेलशोधक (रिफाइनर) और एलएनजी का चौथा सबसे बड़ा आयातक है। हमारी तेलशोधन (रिफाइनिंग) क्षमता 5.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन से अधिक है और इस दशक के अंत तक इसे 400 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) से आगे बढ़ाने का एक स्पष्ट रोडमैप हमारे पास उपलब्ध है।
भारत की ऊर्जा संबंधी मांग – जो 2047 तक दोगुनी होने का अनुमान है – बढ़ती वैश्विक मांग का लगभग एक-चौथाई हिस्सा होगी, जिससे हमारी सफलता वैश्विक ऊर्जा स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण बन जाएगी। सरकार का दृष्टिकोण सुरक्षा को सुधार के साथ जोड़ने का रहा है। तेल की खोज का क्षेत्र 2021 में तलछटी घाटियों के 8 प्रतिशत से बढ़कर 2025 में 16 प्रतिशत से अधिक हो गया है। हमारा लक्ष्य 2030 तक इसे बढ़ाकर 10 लाख वर्ग किलोमीटर करना है। तथाकथित ‘निषिद्ध’ (नो-गो) क्षेत्रों में 99 प्रतिशत की भारी कमी ने अपार संभावनाओं को जन्म दिया है, जबकि ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (ओएएलपी) पारदर्शी व प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया सुनिश्चित करती है। गैस मूल्य निर्धारण से संबंधी नए सुधारों – जिनमें कीमतों को भारतीय कच्चे तेल की टोकरी से जोड़ा गया है और गहरे पानी एवं नए कुओं के लिए 20 प्रतिशत प्रीमियम की पेशकश की गई है – ने निवेश को बढ़ावा दिया है।
हमारी ऊर्जा की कहानी सिर्फ हाइड्रोकार्बन की ही नहीं, बल्कि बदलाव की भी कहानी है। वर्ष 2014 में इथेनॉल मिश्रण 1.5 प्रतिशत से बढ़कर आज 1.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा की बचत के बराबर हो गई है और किसानों को सीधे एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान हुआ है। सतत के तहत 300 से ज़्यादा संपीड़ित बायोगैस संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं, जिनका लक्ष्य 2028 तक 5 प्रतिशत मिश्रण का है और तेल से जुड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद को लेकर कुछ जगहों में काफी शोरगुल हुआ है। आइए तथ्यों को इस शोरशराबे से अलग करके देखें। रूस की तेल पर ईरान या वेनेज़ुएला के कच्चे तेल की तरह कभी प्रतिबंध नहीं लगाया गया। यह जी7/ईयू मूल्य-सीमा प्रणाली के अंतर्गत है जिसे जानबूझकर राजस्व को सीमित रखते हुए तेल प्रवाह को बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है। ऐसे पैकेजों के 18 दौर हो चुके हैं और भारत ने हरेक दौर का पालन किया है। प्रत्येक लेनदेन में कानूनी लदान (शिपिंग) एवं बीमा, अनुपालन करने वाले व्यापारियों और लेखा-परीक्षण (ऑडिट) किए गए चैनलों का उपयोग किया गया है। हमने कोई नियम नहीं तोड़े हैं। हमने बाजारों को स्थिर किया है और वैश्विक कीमतों को बढ़ने से रोका है।
कुछ आलोचकों का आरोप है कि भारत रूस के तेल के लिए एक “लौंड्रोमैट” बन गया है। इससे अधिक निराधार बात और कुछ नहीं हो सकती। भारत इस संघर्ष से काफी पहले दशकों से पेट्रोलियम उत्पादों का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक रहा है और हमारे रिफाइनर विश्व भर से इस प्रकार के क्रूड का एक समूह बनाते हैं। निर्यात आपूर्ति श्रृंखलाओं को सक्रिय रखता है। वास्तव में, रूस के कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगाने के बाद यूरोप ने भी भारतीय ईंधनों की ओर रुख किया। निर्यात की मात्रा और रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) मोटे तौर पर समान ही हैं। मुनाफे लेने का इसमें का कोई सवाल ही नहीं है।
यह तथ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि भारत ने यूक्रेन संघर्ष के बाद वैश्विक कीमतों में उछाल आने पर अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए निर्णायक रूप से कदम उठाए। तेल से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) ने डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर तक के नुकसान को सहन किया। सरकार ने केन्द्रीय और राज्य के करों में कटौती की और निर्यात से जुड़े नियमों ने यह अनिवार्य किया कि विदेशों में पेट्रोल और डीजल बेचने वाले रिफाइनर को घरेलू बाजार में कम से कम 50 प्रतिशत पेट्रोल और 30 प्रतिशत डीजल बेचना होगा।
इन उपायों ने, काफी राजकोषीय लागत पर, यह सुनिश्चित किया कि एक भी खुदरा दुकान खाली न रहे और परिणामस्वरूप भारतीय घरों के लिए कीमतें स्थिर रहीं। बड़ा सच यह है कि वैश्विक तेल का लगभग 10 प्रातशत आपूर्ति करने वाले दुनिया के इस दूसरे सबसे बड़े उत्पादक का कोई विकल्प ही नहीं है। जो लोग उंगली उठा रहे हैं, वे इस तथ्य की अनदेखी करते हैं। वसुधैव कुटुम्बकम के अपने सभ्यतागत मूल्यों के अनुरूप भारत द्वारा सभी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करने से 200 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के विनाशकारी झटके को रोका गया।
यह वही ‘मेड इन इंडिया’ है जो विश्व दृष्टिकोण के लिए भारत में आकार ले रही नई औद्योगिक क्रांति को आकार देता है। इस औद्योगिक क्रांति में सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा और विशेष रसायन शामिल हैं – जो उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों (पीएलआई) और पीएम गतिशक्ति लॉजिस्टिक्स के सहारे संचालित हैं। सेमीकंडक्टर के उत्पादन में तेजी अब एक नए स्तर पर पहुंच रही है – जो नीतिगत गंभीरता और क्रियान्वयन का प्रमाण है। मंत्रिमंडल ने हाल ही में भारत सेमीकंडक्टर मिशन के तहत चार अतिरिक्त सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग परियोजनाओं को मंजूरी दी है और प्रधानमंत्री का जापान में एक सेमीकंडक्टर उत्पादन केन्द्र का हालिया दौरा और जापान की निवेश संबंधी नवीनीकृत प्रतिबद्धताएं एक सुदृढ़ एवं विश्वसनीय तकनीकी आपूर्ति श्रृंखलाओं से संबंधित एक साझा रोडमैप को रेखांकित करती हैं।
डिजिटल अर्थव्यवस्था इन लाभों को कई गुना बढ़ा देती है। भारत वास्तविक समय में भुगतान के मामले में दुनिया भर में अग्रणी है। यूपीआई की सर्वव्यापकता छोटे व्यवसायों की उत्पादकता बढ़ाती है और हमारा स्टार्टअप इकोसिस्टम नवाचार को सेवाओं एवं समाधानों के निर्यात में बदल रहा है। जब डिजिटल तेजी वास्तविक बुनियादी ढांचे के साथ मिलती है, तो प्रभाव बढ़ता है और परिणाम स्वरूप  कम टकराव, सुव्यवस्थित और निवेश एवं उपभोग का एक बेहतर चक्र सुनिश्चित होता है।
आगे का रास्ता आशाजनक है। स्वतंत्र अनुमानों (ईवाई) के अनुसार, 2038 तक भारत पीपीपी के आधार पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद 34 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होगा। यह प्रगति सतत सुधारों, मानव पूंजी और प्रत्येक उद्यम व परिवार के लिए प्रचुर, स्वच्छ एवं विश्वसनीय ऊर्जा पर निर्भर है।
एक महान सभ्यता की परीक्षा उसके कठिन क्षणों में होती है। अतीत में जब भी भारत की क्षमता पर संदेह किया गया, इस देश ने हरित क्रांतियों, आईटी क्रांतियों और शिक्षा व उद्यम के जरिए लाखों लोगों के गौरवपूर्ण उत्थान के साथ उसका जवाब दिया। आज का समय भी इससे कुछ अलग नहीं है। हम अपने दृष्टिकोण पर टिके रहेंगे, अपने सुधारों को निरंतर जारी रखेंगे और अपने विकास को तीव्र, लोकतांत्रिक एवं समावेशी बनाए रखेंगे ताकि लाभ सबसे वंचित लोगों तक पहुंच सके। आलोचकों के लिए, हमारी उपलब्धियां ही हमारा जवाब होंगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, विकसित भारत महज एक आकांक्षा ही नहीं, बल्कि उपलब्धि का एक सार है और विकास के ये आंकड़े उस व्यापक कहानी का ताजा अध्याय मात्र हैं।
लेखक केन्द्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हैं

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