महंत आवास पर भी हुआ विवाह का लोकाचार

गले सर्पो के हार सिर गंगा की धार ले भोला आये बियाह रचाने।
छोड़ी मृगछाला, चन्द्रमा जटा सजाया
सजे बाराती संग भोला चले गौरी लाने को।
वाराणसी। महाशिवरात्रि पर बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ और माता गौरा की वर-वधु के रूप में राजसी शृंगार किया गया। दूल्हा बने बाबा की प्रतिमा को सेहरा लगाया गया था वही माता गौरा मथुरा से मंगवायी गई खास लाल लहंगे में सजीं।
टेढीनीम महंत आवास पर साढ़े तीन सौ वर्ष वर्षो से भी अधिक समय से चली आ रही लोकपरंपरा के अनुसार पं. वाचस्पति तिवारी ने दोपहर में मातृका पूजन की परंपरा का निर्वाह किया। पारंपरिक वैवाहिक गीतों की गूंज इस दौरान होती रही। इसके बाद करीब चार सौ साल पुराने स्फटिक के शिवलिंग को आंटे से चौक पूर कर पीतल की परात में रखा गया। इसके उपरांत वैदिक ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चार के माध्यम से सभी देवी-देवताओं से शिव के विवाह में शामिल होने का आमंत्रण दिया गया। बाबा और गौरा की प्रतिमा की सायंकाल आरती की। सुबह ब्रह्ममुहूर्त में पं. वाचस्पति तिवारी ने सपत्नीक रुद्राभिषेक किया। दोपहर में फलाहर का भोग लगाया गया। भोग आरती के बाद संजीवरत्न मिश्र ने बाबा एवं माता की चल प्रतिमा का राजसी शृंगार किया। सायंकाल श्रद्धालु महिलाओं ने मंगल गीत गाकर माहौल भक्तिमय कर दिया। रात्रि मे मंदिर में चारों प्रहर की विशेष आरती के विधान पूर्ण किए गए।