यूपी के मदरसों में लाए जा रहे बिहार के बच्चे आजाद कराए गए
अयोध्या।बिहार के अररिया से उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के देवबंद मदरसे ले जाए जा रहे 95 बच्चों को अयोध्या पुलिस ने चेकिंग के दौरान बस से मुक्त कराया. पुलिस ने बस रोककर जब उसे पूछताछ की तो पता चला कि यह सभी बच्चे बिहार के अररिया के रहने वाले हैं, इनको देवबंद के मदरसों में ले जाया जा रहा था. पुलिस ने प्राइवेट बस को कोतवाली नगर के देवकाली के पास रोककर तलाशी शुरू की. बस चालक, क्लीनर और बस में मौजूद मौलवियों से की गई पूछताछ के बाद सभी मुस्लिम बच्चों को पुलिस लाइन लाया गया और उनके आधार कार्ड चेक किए गए।
बस में बच्चों को जानवरों की तरह भरा गया था. यह बच्चे गरीब परिवारों के हैं. कुछ ऐसे भी हैं, जिनके माता-पिता नहीं हैं. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के सदस्यों का कहना है कि इन बच्चों में से कई के आधार कार्ड फर्जी हो सकते हैं. यह मामला बड़ी साजिश का हिस्सा भी हो सकता है.
खबरों के अनुसार बिहार के विभिन्न जिलों से मुस्लिम समुदाय के 95 बच्चों को बस से सहारनपुर ले जा रहे पांच मौलवियों को गिरफ्तार किया गया है. राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सक्रियता से मानव तस्करी विरोधी इकाई ने पुलिस का सहायता से इन बच्चों को रेस्क्यू किया.
बाल आयोग की टीम ने बताया कि ज्यादातर बच्चे प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ते हैं। ऐसे में इन बच्चों को मदरसा क्यों भेजा जा रहा है, यह बड़ा सवाल है।
राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी से बच्चों ने बताया कि बिहार के अररिया जिले के गांव करहरा निवासी शबे नूर उन्हें अलग-अलग मदरसों में भेजने का काम करता है।शबे नूर को बच्चे मामू कहते हैं। वह सहारनपुर के साथ ही दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, औरंगाबाद, बंगलूरू और आजमगढ़ के मदरसों में भी बच्चों को भेजता है। इसके बदले उसे मोटी रकम मिलती है।
इनकी उम्र 9 से 12 वर्ष के बीच है। बच्चों को ले जाने वालों के पास माता पिता का सहमति पत्र नहीं था। बच्चों का कहना था कि उन्हें मदरसे में लेकर जा रहे हैं। कुछ बच्चे जाने वाली जगह का नाम भी नहीं बता पा रहे थे। इसमें कुछ अनाथ भी है।
बच्चों से जब पूछा गया कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है तो उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। एक बच्चे ने कहा कि हाफिज जी ने बोला था तो अम्मी ने भेज दिया। कई अन्य बच्चों ने कहा कि हाफिज जी उन्हें उनके घर से लेकर गए थे। वहीं कुछ का कहना है कि उनके घर पर कहा गया की भेज दीजिए तो उन्हें भेज दिया गया।
इन्हें पढ़ाने के नाम पर सहारनपुर जिले के एक मदरसे में ले जाया जा रहा था। ये मदरसे रजिस्टर्ड भी नहीं थे। मौलवियों पर बच्चों को यतीम बता कर बाहर से फंड लेने आरोप लगा है। बच्चों ने बताया कि उनके साथ अमानवीयता की जा रही थी।
पुलिस से हुई शुरुआती पूछताछ में बस में सवार 5 मौलवियों ने बताया कि वो सहारनपुर जा रहे हैं। यहाँ के देवबंद इलाके में मौजूद 2 मदरसों का जिक्र किया गया जिनके नाम मदारूल उलूम रफीकिया और दारे अरकम हैं। सभी बच्चों का एडमिशन इसी मदरसे में होना था।
मदरसा संचालक हलफनामा तैयार कराते हैं, जिसमें लिखा होता है कि सभी तरह की जिम्मेदारी बच्चों की ही होगी। ऐसे में यदि किसी की मौत भी होती है तो संचालक की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। इसकी जानकारी अभिभावकों को नहीं होती। उस पर बच्चों के ही दस्तखत होते हैं।
भले ही मौलवी यह दावा करें कि बच्चों को दीनी तालीम के कारण सहारनपुर ले जाया जा रहा था, लेकिन बच्चों की अलग ही कहानी है। वे मदरसे में नहीं जाना चाहते। 14 साल के एक बच्चे ने तो साफ कहा कि वहां तो सिर्फ धर्म की बातें होती हैं। एक दूसरे बच्चे का कहना था कि मैं डाक्टर बनना चाहता हूं। मदरसे में रहकर भला कोई कैसे डाक्टर बन सकता है।
सभी को लखनऊ के मुमताज शरणालय में रखा गया है। पुलिस मौलवियों से पूछताछ कर पूरे रैकेट की जानकारी हासिल करने में जुटी है। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी का कहना है कि बच्चों और उन्हें ले जा रहे लोगों के बयान मेल नहीं खा रहे हैं।
इससे पहले, बिहार से विभिन्न राज्यों के मदरसों में भेजे जा रहे बच्चों के एक समूह को उत्तर प्रदेश राज्य बाल आयोग ने गोरखपुर में बचाया था।